Kabir Ke Dohe – महान संत कबीरदास को कवि कबीर के नाम से ही जाना पहचाना जाता है । कवि कबीर भक्तिकाल के महान समाज सुधारक थे।उन्होंने समाज में व्याप्त छुआ-छूत,धार्मिक आडम्बर,ऊँच-नीच तथा बहुदेववाद का कड़ा विरोध करते हुए ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु के सर्वोत्तम मूल्यों को स्थापित किया ।कबीर की प्रतिभा में अबाधगति व तेज था।
इसलिए उन्हें सर्वप्रथम समाज सुधारक और बाद में कवि कहा जाता हैं ।आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने तो कबीर जी को वाणी का डिक्टेटर तक कहा हैं ।

कबीर ने अपनी सपाटबयानी एवं तटस्थता से समाज -सुधार के लिए जो जो उपदेश दिये उनका संकलन उनके शिष्य धर्मदास ने किया । कबीर की रचनाओं के संकलन को बीजक कहा जाता हैं ।
बीजक के तीन भाग हैं—साखी ,सबद व रमैनी ।
संत काव्य परंपरा में उनका काव्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं । कबीर के दोहे वर्तमान समय में भी सदाचार और श्रेष्ठ जीवन-मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा प्रदान करते हैं ।
संत कबीर के अनुसार जीवन में त्याग की महत्ता हैं । मानव को हंस की तरह नीर-क्षीर विवेक रखना चाहिए ।अभिमान त्यागने में सार हैं ।
कबीर के अनुसार साधु की पहचान जाति से नहीं उसके ज्ञान से होती है । सत्संगति सार्थक होती हैं । दुराशा सर्पिणी के समान घातक होतीं हैं ।कबीरदास जी कहते हैं कि -वाणी में कोयल सी मिठास होनी चाहिए ।
कबीरदास की जीवनी
कबीर दास के जन्म के बारे में कुछ भी सत्यापित नहीं है परन्तु कुछ विद्वान लोग मानते है उनका जन्म कशी में हुआ था सन 1398 में ऐसा माना जाता है और उनकी मृत्यु 1518 मगहर उत्तरप्रदेश में हुई कबीर का यह मानना था की कि कर्मों के अनुसार ही इंसान को गति मिलती है किसी स्थान विशेष के कारण नहीं। अपनी इस मान्यता को सिद्ध करने के लिए अंत समय में वह मगहर चले गए ; क्योंकि लोगों की मान्यता थी कि काशी में मरने पर स्वर्ग और मगहर में मरने पर नरक मिलता है।
संत कबीरदास के लोकप्रिय दोहे
प्रस्तुत हैं कबीरदास जी के कुछ प्रमुख दोहें जो मानव जीवन के लिए आज भी बहुत प्रासंगिक हैं ।

१ — त्याग तो ऐसा कीजिए,सब कुछ एक ही बार ।
सब प्रभु को मेरा नहीं,निहचे किया विचार ।।

२ — छोड़े जब अभिमान को, सुखी भया सब जीव ।
भावै कोई कछु कहै, मेरे हिय निज पीव ।।

३ — जाति ना पूछो साधु की , पूछि लीजिए ज्ञान ।
मेल करो तलवार का , पड़ा रहन दो म्यान ।।

४ — सुनिये गुण की बारता, औगुन लीजे नहीं ।
हंस छीर को गहत हैं, नीर सो त्यागे जाहिं ।।

५ — मारिये आसा सांपनी, जिन डसिया संसार ।
ताकी औषध हैं , ये गुरु मंत्र विचार ।।

६ — कागा काको धन हरै , कोयल काको देत ।
मीठा शब्द सुनाय के , जग अपनो करि लेत ।।

७ — संगत कीजे साधु की कभी न निष्फल होय ।
लोहा पारस परस ते , सो भी कंचन होय ।।
तो आशा करते है दोस्तों आपको कबीरदास के दोहे और उनके जीवन से जुडी हुई कुछ बाते अच्छी लगी होगी तो इसे अपने साथियों के साथ शेयर अवश्य करे धन्यवाद
Best se bhi best Ager inshan ko sudharna hai toh sant Kabir Singh ji k doe apne man k undar utharna chahiye