सिंचाई क्या है? तथा सिंचाई के प्रकार – Irrigation in Hindi

सिंचाई क्या है? कला है साहब…कला. विज्ञान की मानें तो साइंस है, अपने खेतों तक पानी पहुंचाने की. साइंस और आर्ट, दो अलग विषय हैं. दसवीं के बाद मुझे भी ये पता चला था. खैर, सिंचाई में साइंस और कला की बात कैसे आ गयी? यही बातें इस आर्टिकल के माध्यम से बताने की कोशिश करूँगा. इसके साथ ही सिंचाई के प्रकार और और आखिर इसकी जरुरत पड़ ही क्यों रही है आदि सवालों को उत्तर देने की पूरी कोशिश करूँगा.

Irrigation व सिंचाई क्या है?

चलिए लौटते हैं अपनी कला और साइंस वाली बात पर. अपने खेत तक पानी को सही सलामत पहुंचाना ही इरीगेशन या सिंचाई कहलाता है. अब आप बाल्टी से ले जाओ या पाइप लगा के, ये आप पर छोड़ देते हैं. वैसे सिंचाई के लिए बढ़िया-बढ़िया से नाले (कैनाल) डिजाईन किये जाते हैं पर उधर कभी और चलेंगे.

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credit – Pascvii

वैसे छोड़ेंगे नहीं. बात पूरी करेंगे. आप कभी ‘बाल्टी’ और ‘पाइप’ पर ध्यान दिए होंगे तो मालूम चलेगा कि ये इंसानों द्वारा बनायी गयी चीज़ें हैं. माने नेचुरल नहीं हैं, आर्टिफीसियल है. अब सिंचाई की परिभाषा को पूरा करते हैं –

अपने खेत तक पानी को किसी आर्टिफीसियल (कृत्रिम) तरीके से सही सलामत पहुँचाना ही इरीगेशन कहलाता है.  अब अगर आपके दिमाग में बारिश वाले ख़याल आ रहे हैं तो बहुत बढ़िया. उसको भी समझ लेते हैं पर अगले टॉपिक में. यहीं पर है नीचे, कहीं जाने की जरुरत नहीं.

सिंचाई की जरुरत क्यों पड़ती है?

बिल्कुल बढ़िया सवाल है कि आखिर जब दुनिया में evaporation और condensation वाली cycle लगातार चल रही है तो ऐसी भी क्या आफत आ गई कि अलग से पानी पेड़-पौधों को दिया जा रहा है? सीधे से दो कारण है, जिसमें से एक बहुत ही ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है.

पहला कारण  – इंसानों द्वारा उल्टे किये कामों की वजह से वो ऊपर वाली cycle पंक्चर हो चुकी है. और न भी होती, फिर भी इरीगेशन की आवश्यकता पड़ती, लेकिन खर्चा और टेंशन थोड़ा कम होता.

दूसरा कारण – Malnutrition मतलब कुपोषण. आपकी फसल को सही मात्रा में सही समय तक सही पानी मिलता रहे, इसलिए सिंचाई की जरुरत पड़ती है. बारिश पर आपका कंट्रोल नहीं है (हालांकि ‘मॉडर्न साइंटिस्ट्स’ इसको भी कंट्रोल करने की कोशिश में लगे हैं). ज्यादा हो गयी तो फसल बर्बाद और कम हुई तब भी.

एक मजेदार फैक्ट ये है कि ‘हड़प्पा’ वाले भी irrigation किया करते थे, वो भी बाढ़ के पानी से. इस बारे में पढियेगा आनंद मिलेगा.

सिंचाई के लाभ और नुक्सान:

वो सिक्के के दो पहलु वाली लाइन को पूरा करके आगे बढ़ जाना. उसी प्रकार सिंचाई के भी दो पहलु हैं. फायदा और नुक्सान दोनों. अंग्रेजी की एक लाइन कभी पढ़े थे कि ‘Excess of everything is bad’ अर्थात् ‘हर चीज़ की अति खराब होती है.’ इसकी भी है. पहले नुक्सान की ही बात करते हैं –

सिंचाई के नुक्सान:

पहले थोड़ा सा बेसिक समझ लेते हैं. एक पौधे की ये अभिलाषा होती है कि बराबर मात्रा में पानी मिल जाए, अच्छी धूप, और हवा के ज़रिये थोड़ा कार्बन डाइऑक्साइड. बाकी तो फिर बड़े होकर इंसानों के हाथ कटना ही है. पानी जड़ों से पत्तियों तक जाता है फिर ये खाना बनाती है. साथ में पौधे की जड़ों में अच्छे से हवा आ-जा रही है तो मामला अच्छा रहता है. बैक  टू द टॉपिक.

अब आप अगर बहुत ज्यादा खर्चा करके पानी अपने खेत तक ले के जा रहे हो तो इसका मतलब ये नहीं कि ‘मालिक इतना खर्चा हो ही गया है तो थोडा और पानी दे देते हैं.” न. इससे होगा ये कि वाटर टेबल अपनी जगह से ऊपर आ जायेगी.

  • मतलब पानी-पानी ही पानी हो जाएगा. ‘जड़’ वाले एरिया में हवा का आना-जाना बंद हो जाएगा. यानी सीधा-सीधा असर पड़ेगा पौधे या फसल पर. यानी फसल बर्बाद. फिर एक टाइम पे पानी इतना बढ़ जाएगा कि ज़मीन के ऊपर तक आ जाएगा और मिट्टी को पूरा खारा करके बंजर बना देगा.
  • पाइप वगेरा लीक हो गया तो पानी जमा हो जाएगा. पानी कहीं जमा हो जाए तो मच्छरों की अलग समस्या है. ज़मीन के पानी में प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है.

सिंचाई के लाभ:

पैसा ही पैसा होगा फायदा ही फायदा होगा. अच्छे से सिंचाई होगी तो फसल भी अच्छी होगी. फसल अच्छी होगी तो आपका व्यापार भी अच्छा होगा, जिससे आपकी वेल्थ अच्छी होगी. फायदा अंततः आपके स्टेट को होगा.

  • सूखे जैसे हालातों में बहुत ही ज्यादा उपयोगी.
  • फसल को उसके हिसाब से पानी दिया जा सकता है. न ज्यादा, न ही कम.
  • इससे ग्राउंड वाटर का लेवल कम नहीं होता जिससे की पानी आसानी से निकाला जा सकता है. हालांकि, अब पानी इतना निकाल दिया है कि निकालना मुश्किल हो रहा है. बाकी फायदे अनेक हैं, पर मेन यही हैं.

ये तो थी बात कि सिंचाई क्या है साथ ही हमने जाना  इसके लाभ और हानियाँ.  अब बढ़ते हैं अगले टॉपिक पर, जिसका नाम है सिंचाई के प्रकार.

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सिंचाई के प्रकार?

इरीगेशन का ज्ञान समाप्त, अब बात करते हैं सिंचाई के प्रकार की या कहें कि सिंचाई की विधियों की. ‘कहना क्या चाहते हो’ वाले अंकल जी दिमाग में आ रहे हैं तो साधारण भाषा में कहें तो पानी को किस तरीके से ज़मीन तक पहुंचाया जाता है. मुख्यतः चार विधियां हैं. बताते हैं. हांजी, यहीं नीचे.

सिंचाई किस विधि से करनी है ये जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि सिंचाई कहाँ करनी है.

खेत में ही करोगे, पर खेत समतल (plain) है या नहीं? पानी का श्रोत किधर है? कैसा है?  मिट्टी कैसी है? फसल कौन सी है? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके आधार पर सिंचाई की विधियों को बांटा गया है.

सिंचाई के चार प्रकार  – सतही, अधोसतह, बौछारी (sprinkler) और टपकेदार (drip ओर trickle).

1 – सतही सिंचाई (Surface Irrigation):

मतलब भूमि के ऊपर से. इसे खुली सिंचाई विधि भी कहा जाता है. जैसे नालों के ज़रिये अगर आपके खेत में पानी पहुँच रहा है तो उसे कहेंगे सतही सिंचाई.

  • इसमें पानी ‘ग्रेविटी’ के द्वारा पहुँचाया जाता है, अर्थात् किसी ऊँचे स्थान से नीचे की ओर.
  • खेत में बहुत आसानी से पानी अंदर न जाए तो इसी ‘प्रकार’ से पानी apply करते हैं.

सतही सिंचाई को अन्य प्रकारों में विभाजित किया गया है, जो कि इस प्रकार हैं –

(a) बाढ़ सिंचाई या विधि (Flooding Method) –  

  • इसमें भूमि को कुछ भागों में बाँट दिया जाता है और फिर पानी बस छोड़ देते हैं. एक तरफ से पानी आता है और दूसरी और से आगे चला जाता है.
  • भूमि उबड़-खाबड़ हो तो इसे अपनाया जाता है.
  • पानी की अगर कमी नहीं है तो शौक से बाढ़ सिंचाई कीजिये.
  • पास-पास उगने वाली फसलों (ज्वार, धान, आदि) के लिए उपयोगी.

(b) चेक विधि (Check Irrigation) –

  • भूमि को चेक पैटर्न में बाँट दिया जाता है, माने छोटे-छोटे प्लॉट्स बनाए जाते हैं.
  • मिट्टी का infiltration (पानी का भूमि के अन्दर जाना) रेट कम या ज्यादा हो, चलेगा.
  • पास उगने वाली फसलों के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है.
  • अगर भूमि में बहुत आसानी से infiltration हो रहा हो तो प्लॉट्स का साइज़ छोटा रखा जाता है.

(c) बॉर्डर सिंचाई (Border Irrigation) –

  • लैंड को बड़ी-बड़ी पट्टियों में बांटते हैं.
  • पोपुलर चॉइस का अवार्ड इसे ही मिला है. खासकर उत्तर-भारत में.
  • गेहूं, जौ, आदि जैसी फसलों को लिए प्रयोग की जाती है.
  • पानी की कमी नहीं है तो इसे अपना सकते हैं.

(d) कुंड सिंचाई (Furrow Irrigation) – 

  • भूमि में नालियां (या कुंड) बनाए जाते हैं.
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कुंड सिंचाई | (source – USGS)
  • इक बगल में कुंड होगा, इक बगल में…आपकी फसल. फसलें बाजू वाले कुंड से पानी लेती हैं. बस ऐसा ही होता है इसमें.
  • पानी का क्षेत्र-फल भूमि के क्षेत्र-फल का 1/5 से 1/2 होता है.
  • मक्का, आलू, गन्ना, कपास, आदि जैसी फसलों में furrow का प्रयोग लाभकारी रहता है.

(e) थाल सिंचाई (Basin Method) – 

  • ‘महबूब’ के ‘आने’ पर जो ‘फूल’ बरसाए गए थे, वो थाल सिंचाई की ही उपज थे.
  • बाग़-बगीचों में ही इसका प्रयोग होता है.
  • फूलों/पेड़ों के चारों ओर थोडा सा गहरा गड्ढा खोद कर उसमें पानी दिया जाता है.

2 –  अवभूमि या अधोसतह सिंचाई (Sub-surface Irrigation): नाम से समझ जाओ. इसमें पानी ज़मीन के नीचे से पहुंचेगा. नालों के ज़रिये क्या? नहीं. पाइप के द्वारा. इन पाइप में होते हैं छेद जिनसे पानी मिट्टी को मिलता है और फिर जड़ों को.

इस प्रकार की सिंचाई विधि में भूमि का समतल होना आवश्यक है. सतही विधि के मुकाबले इसमें पानी का वास्पीकरण बहुत कम मतलब न के बराबर होता है.

सारे ताम-झाम सही से करने होते हैं तो इसमें शुरुआत में बहुत खर्चा आता है. हालांकि एक बार अगर सब सैट हो जाए तो दिक्कतें कम आती है.

लेकिन एक नुक्सान कि बात और है कि अगर कुछ खराबी हो जाए तो फिर से बात पैसों पे आ जाती है. सारी फिटिंग भूमि के नीचे ही होती है तो फिर खोदने और डिफेक्ट का पता लगाना थोडा सा मुश्किल और खर्चीला हो जाता है.

3 – बौछारी सिंचाई (Sprinkler Irrigation):

इसे over-head इरीगेशन भी कहा जाता है. इसमें पानी को भूमि पर स्प्रे के रूप में दिया जाता है. इसमें भी पाइपिंग की जाती है. एक छोर पानी के श्रोत से जुदा होता है और दुसरे हिस्से पर लगा होता है स्प्रिंक्ल जिससे फव्वारे जैसा पानी निकालता है.

इसकी ख़ास बात ये है कि इसमें पानी की आवश्यकता सतही इरीगेशन के लगभग 65% के बराबर होती है. उदाहरण – अगर किसी भूमि की सतही सिंचाई के लिए आपको 100 लीटर पानी चाहिए तो उसी भूमि को आप स्प्रिंक्ल या बौछारी सिंचाई की मदद से 65 लीटर में सींच सकते हैं.

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स्प्रिंकलर सिंचाई | (source – EPA)

हालांकि, महंगी विधि है. पाइप में पानी की गति तेज़ होनी चाहिए तभी आगे स्प्रिंक्ल उस पानी को फव्वारे के रूप में बाहर छोड़ पायेगा. और गति तेज करने के लिए पंप की आवश्यकता होती है. मतलब बिजली की खपत. बाकी आप समझ जाओ.

स्प्रिन्क्ल भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं. कुछ घूम करके पानी हर दिशा में पहुंचाते हैं. कुछ एक जगह से एक दिशा में ही बहुत दूर तक सींच सकते हैं. जिसको जैसी जरुरत, वैसा स्प्रिंक्ल खरीद सकते हैं.

इस  विधि का एक लाभ ये भी है कि इससे भू-क्षरण (soil-erosion) की समस्या नहीं आती. स्प्रे क्या ही उखाड़ लेगा? 

4 – टपकेदार विधि (ट्रिकल व ड्रिप सिंचाई):

इस विधि में भूमि को लगातार ‘टिप टिप’ बरसते हुए पानी से सींचा जाता है. नल हल्का खुला छोड़ने पर जैसे पानी टपकता है न, वैसे ही. ये सबसे लेटेस्ट विधि है और सबसे बेहतर भी.

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ड्रिप सिंचाई | (source – minorirrigationukgov)

इसमें सरफेस इरीगेशन के मुकाबले सिर्फ 20-30% पानी की आवश्यकता होती है. वास्पीकरण तो बिलकुल न के बराबर होता है. ख़ास बात ये है कि, इसमें पानी के साथ-साथ ही उर्वरक (fertilizers) भी soil में पहुंचाए जा सकते हैं.

सारी बातें अच्छी-अच्छी हैं तो जाहिर सी बात है कि पैसा बहुत लगेगा. इसके आगे इस टॉपिक के बारे में कुछ नहीं कहना चाहूँगा.

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निष्कर्ष – बूँद-बूँद से सिर्फ घड़ा नहीं, soil के pores भी भरे जा सकते हैं. 

चलिए इसी निष्कर्ष के साथ सिंचाई  और इसके प्रकार ख़तम करते हैं. आपका ज़रा सा भी ज्ञान-वर्धन हुआ हो तो शेयर कर दीजियेगा. न  अच्छा लगा हो तो कमेंट बॉक्स में कारण बता देना. बाकी इसे पूरा पढने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

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